इस पाठ में बच्चों की जो दुनिया रची गई है वह आपके बचपन की दुनिया से किस तरह भिन्न है?

इस पाठ में बच्चों की जो दुनिया रची गई है, उसकी पृष्ठभूमि पूर्णतया ग्रामीण जीवन पर आधारित है। पाठ में अतीत के भारत के किसी गाँव के ग्रामीण जीवन में एक मनोहारी चित्र सजाया है| और इसी पृष्ठभूमि को लेकर रचनाकार ने इस कथा को अपने असली अनुभवों के आधार पर रचा है| ग्रामीण परिवेश में चारों ओर उगी फसलें, उनके दूधभरे दाने चुगती चिड़ियाँ, बच्चों द्वारा उन्हें पकड़ने का असंभव प्रयास, उन्हें उड़ाना, माता द्वारा बलपूर्वक बच्चे को तेल लगाना, चोटी बांधना, कन्हैया बनाना, साथियों के साथ मस्तीपूर्वक खेलना, आम के बाग में वर्षा में भीगना, बिच्छुओं का निकलना, मूसन तिवारी को चिढ़ाना, चूहे के बिल में पानी डालने की कोशिश के वक्त अचानक से शर्प का निकल आना और बच्चे का भागते हुए पिता की जगह माँ के आँचल में छिप जाना|

यह सब हमारे अथवा वर्तमान दौर के किसी भी शिशु के जीवन से बिलकुल भिन्न है| वर्तमान में अधिकाँश माँ-बाप नौकरी करते हैं| और इसी कारण से उन्हें अपने बच्चों के साथ वक्त बिताने का समय नहीं मिलता| बच्चे भी इसी कारण से अपने माता पिता से वो स्नेह प्राप्त नहीं कर पाते इसी कारण से उनका अपने माता-पिता के साथ संबंध भी उतना प्रगाढ़ नहीं होता जितना इस कहानी के बच्चे का है|


आज छोटी से उम्र के बच्चों को उस उम्र में जब उन्हें अपने माता-पिता के साथ वक्त बिताना चाहिए, अपने नन्हें साथियों के साथ खेलना चाहिए, उन्हें उस उम्र में स्कूल में धकेल दिया जाता है| बच्चे क्रिकेट, वॉलीबॉल, कंप्यूटर गेम, वीडियो गेम, लूडो आदि खेलते हैं। जिस धूल में खेलकर ग्रामीण बच्चे बड़े होते हैं तथा मजबूत बनते हैं। उससे इन बच्चों का कोई मतलब नहीं होता है। आज माता-पिता के पास बच्चों के लिए भी समय नहीं है, ऐसे में बच्चे टी-वी-, वीडियो देखकर अपनी शाम तथा समय बिताते हैं।


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